भुवनेश्वर के KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या, 3 महीने में यह दूसरी घटना

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (KIIT) एक बार फिर गंभीर विवादों में है। हाल ही में संस्थान की एक नेपाली छात्रा की छात्रावास में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। पुलिस द्वारा इसे KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या का मामला माना जा रहा है। यह दुखद घटना बीते तीन महीनों में दूसरी बार हुई है, जब किसी नेपाली छात्रा ने KIIT परिसर में आत्महत्या की है।

भुवनेश्वर के KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या, 3 महीने में यह दूसरी घटना
भुवनेश्वर के KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या, 3 महीने में यह दूसरी घटना

यह घटनाक्रम न केवल नेपाली छात्रों में भय और अविश्वास को बढ़ाता है, बल्कि संस्थान की सुरक्षा, छात्र-कल्याण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता व्यवस्थाओं पर भी बड़े सवाल खड़े करता है।


मृतक छात्रा के बारे में जानकारी

पुलिस कमिश्नर सुरेश देवदत्त सिंह के अनुसार, मृतक छात्रा नेपाल के बीरगंज की रहने वाली थी और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रही थी। शव को होस्टल के कमरे में पाया गया। शुरुआती जांच में आत्महत्या की आशंका जताई गई है, हालांकि मृत्यु के पीछे के कारणों की पुष्टि अभी नहीं हुई है

पुलिस ने KIIT परिसर में पहुंचकर जांच शुरू कर दी है और मृतका के मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की फॉरेंसिक जांच भी की जा रही है।


KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या तीन महीने पहले भी घटी थी ऐसी ही त्रासदी

इस घटना ने तीन महीने पहले हुई एक अन्य नेपाली छात्रा की आत्महत्या की यादें ताज़ा कर दी हैं। उस समय छात्रा ने कथित रूप से ब्लैकमेलिंग और यौन उत्पीड़न से तंग आकर अपनी जान ले ली थी। आरोपी छात्र को पुलिस ने भुवनेश्वर एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया था, जब वह देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रहा था।

उस मामले में क्या हुआ था:

  • आरोपी छात्र अद्विक श्रीवास्तव द्वारा निजी तस्वीरों से ब्लैकमेल करने का आरोप।
  • पीड़िता की शिकायत पर विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता
  • घटना के बाद 1,000 से अधिक नेपाली छात्रों को परिसर खाली करने का आदेश, जिससे तनाव बढ़ा।
  • विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की जांच।

NHRC की रिपोर्ट में KIIT को छात्रा की आत्महत्या का अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार माना गया और कहा गया कि संस्थान ने पीड़िता को “सम्मान और समानता के अधिकार से वंचित किया”।


संस्थान की जवाबदेही पर सवाल

दो छात्राओं की आत्महत्या की घटनाएं बताती हैं कि संस्थान में मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक समर्थन की गंभीर कमी है। एक अंतरराष्ट्रीय छात्र के रूप में, नेपाली छात्रों को न केवल भाषाई और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो उन्हें सहानुभूति और न्यायपूर्ण कार्रवाई की ज़रूरत होती है।

KIIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल शिक्षा में उत्कृष्टता दिखाए, बल्कि छात्रों की मानसिक और भावनात्मक भलाई का भी ध्यान रखे। KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या


सरकार और प्रशासन की भूमिका

फरवरी 2024 में, ओडिशा सरकार ने एक उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन किया था, जिसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को नेतृत्व सौंपा गया था। यह समिति उन घटनाओं की जांच कर रही थी जिसमें कथित रूप से KIIT अधिकारियों द्वारा छात्रों पर बल प्रयोग और मनमानी कार्रवाई की गई थी। KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या

हालांकि, आज तक इस जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है, जिससे छात्रों और अभिभावकों के बीच संदेह और चिंता और गहरा हो गया है।


मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता

KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या की घटनाएं एक गंभीर सामाजिक संदेश देती हैं — आज के युवाओं को न केवल शिक्षा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य समर्थन की भी सख्त आवश्यकता है। KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या

संस्थान को चाहिए कि वह:

  • प्रत्येक छात्र के लिए निशुल्क और गोपनीय काउंसलिंग सेवाएं प्रदान करे
  • कल्चर-सेंसिटिव सपोर्ट सिस्टम विकसित करे
  • छात्रावासों में माहौल की निगरानी और संवादात्मक संस्कृति को बढ़ावा दे
  • अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए विशेष फीडबैक और शिकायत समाधान तंत्र लागू करे

यदि आप या कोई जानने वाला तनाव से जूझ रहा है, तो मदद लें:

  • Aasra: 022-2754 6669
  • Sneha India Foundation: +91-4424640050
  • Sanjivini: 011-24311918
  • Roshni Foundation: 040-66202001 / 040-66202000
  • ONE LIFE: 78930 78930
  • SEVA: 09441778290

यह ही देखे : https://youtube.com/@reportf3n?si=GgdGLoGNH_HT4Re1


निष्कर्ष

भुवनेश्वर के KIIT में नेपाली छात्रा की आत्महत्या केवल व्यक्तिगत त्रासदियां नहीं हैं — ये संस्थान की नीतियों, संवेदनशीलता और जिम्मेदारियों की असफलता का प्रतिबिंब हैं।

अब समय है कि विश्वविद्यालय शब्दों से आगे बढ़कर ठोस सुधारात्मक कदम उठाए। नहीं तो यह चुप्पी, यह निष्क्रियता, और यह लापरवाही और अधिक जानें ले सकती है।

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