सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जातियों (SC) के अंदर भी उप-वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है। इसका मतलब है कि अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति समुदाय के भीतर ही शैक्षणिक और सामाजिक रूप से ज्यादा पिछड़े वर्गों को चिन्हित करके उन्हें आरक्षण का ज्यादा फायदा दे सकेंगी। इस फैसले से पंजाब के बाल्मीकि और मजहबी सिख, आंध्र प्रदेश के मदिगा, बिहार के पासवान, उत्तर प्रदेश के जाटव और तमिलनाडु के अरुंधतियार जैसी कई अनुसूचित जातियों को फायदा होगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राजनीतिक दलों की सांसें फूल जाएगी क्योंकि उन्हें संतुलन बनाना बहुत मुश्किल होगा। एक तरफ, मदिगा जैसे समुदाय कोटा के भीतर कोटा के लिए पुरजोर लड़ाई लड़े तो दूसरी तरफ इस फैसले के आलोचक इसे अनुसूचित जाति समुदाय के भीतर ‘बंटवारा’ और ‘फूट डालने’ वाला करार दे रहे हैं। यही बताता है कि कोटा में कोटा का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए किसी अग्निपथ से कम नहीं रहने वाला।

एक्सपर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत कर रहे हैं और उनका मानना है कि इससे आरक्षण अपने असली मकसद को और अच्छे तरीके से पूरा कर पाएगा। इस फैसले को लेकर पूर्व सामाजिक न्याय और अधिकारिता सचिव आर. सुब्रमण्यम ने हमारे सहयोगी इकनॉमिक टाइम्स से कहा, ‘यह एक स्वागत योग्य कदम है। इससे अनुसूचित जातियों के भीतर शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को व्यापक सुरक्षा मिलेगी।’ उन्होंने आगे कहा कि SC समुदाय में भी कुछ जातियां ऐसी हैं जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से आरक्षण का ज्यादा फायदा उठाया है और आर्थिक रूप से बाकी जातियों से आगे निकल गई हैं। उप-वर्गीकरण के जरिये राज्य सरकारें इस असमानता को दूर कर सकेंगी।

यह पद्धति राष्ट्रीय आयोगों द्वारा भी अपनाई जाती है जब उन्हें किसी समुदाय को SC या ST सूची में शामिल करने के प्रस्ताव भेजे जाते हैं। सुब्रमण्यम ने बताया कि किसी समुदाय के अध्ययन में सरकारी नौकरियों में उस समुदाय की भागीदारी या स्नातकों की संख्या जैसे मानदंडों को शामिल किया जा सकता है।

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