सूरत में एक बार फिर सूरत नगर निगम की लापरवाही सुर्खियों में है। मोटा वराछा क्षेत्र के पहाड़ी गांव में हाल ही में लाखों रुपये की लागत से बनी सड़क बारिश की पहली बौछार में ही टूट गई। यह वही सड़क है जो आसपास की सोसायटियों को जोड़ती है और जिसे विकास के नाम पर नगर निगम ने बड़ी धूमधाम से बनवाया था। लेकिन मात्र तीन दिन की बारिश ने ही इस कथित विकास की असलियत को उजागर कर दिया।

बगल में बहते नाले की अनदेखी बनी आफत
सूरत नगर निगम की लापरवाही का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सड़क के ठीक बगल में बहने वाले नाले की अनदेखी की गई। क्या सड़क निर्माण से पहले अधिकारियों ने साइट का निरीक्षण नहीं किया? यह एक साधारण सी बात है कि बरसात में नाले का जलस्तर बढ़ता है और आसपास की संरचनाएं प्रभावित होती हैं। अगर योजना बनाते समय यह ध्यान दिया गया होता, तो न सड़क टूटती और न ही नागरिकों को परेशानी झेलनी पड़ती।
तीन दिन में टूटी सड़क, फिर खुद निगम ने उसे तोड़ा
बारिश के कारण जब इलाके में घुटनों तक पानी भर गया, तब सूरत नगर निगम की लापरवाही को सुधारने की कोशिश की गई। निगम के अधिकारियों ने “समझदारी” दिखाते हुए खुद ही नई सड़क को तोड़ने का फैसला लिया ताकि पानी की निकासी हो सके। लेकिन सवाल उठता है — क्या इस “समझदारी” का उपयोग पहले नहीं किया जा सकता था?
स्थानीय लोग इसे पूरी तरह लापरवाही मान रहे हैं, न कि कोई तकनीकी भूल। लोगों में आक्रोश है कि करदाताओं के पैसे से बनाई गई सड़क मात्र तीन दिन में क्यों बह गई?
जनता का सवाल: आखिर कब सुधरेगी सूरत नगर निगम की लापरवाही?
यह कोई पहली घटना नहीं है जब सूरत नगर निगम की लापरवाही से जनता को नुकसान हुआ हो। इससे पहले भी कई विकास कार्यों में घटिया निर्माण सामग्री और बिना प्लानिंग के काम करने की शिकायतें सामने आई हैं।
स्थानीय निवासी खुलकर कह रहे हैं कि यह पूरी घटना नगर निगम की नाकामी का परिणाम है। ना तो ड्रेनेज सिस्टम को ठीक से समझा गया, ना ही जल निकासी की योजना बनाई गई। केवल बजट खर्च करना ही शायद अब विकास कहलाता है।

क्या होगी सूरत नगर निगम की अगली कार्रवाई?
अब सवाल यह है कि सूरत नगर निगम की लापरवाही के इस ताज़ा मामले में क्या कोई जवाबदेही तय की जाएगी? क्या संबंधित ठेकेदार और अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी या फिर हमेशा की तरह एक रिपोर्ट बनाकर फाइल बंद कर दी जाएगी?
जनता को चाहिए जवाब, आश्वासन नहीं। क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी नुकसान नागरिकों का ही हुआ है — समय का, धन का और विश्वास का।

निष्कर्ष
सूरत में विकास के नाम पर जो कार्य किए जा रहे हैं, उनकी वास्तविकता हर बारिश में उजागर हो रही है। सूरत नगर निगम की लापरवाही केवल जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं है, बल्कि यह नगर निगम की जिम्मेदारी और नैतिकता पर भी सवाल खड़े करती है। अब वक्त आ गया है कि जवाबदेही तय हो और ठोस सुधार किए जाएं।
यह भी देखे : https://www.youtube.com/@reportf3n